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हरिद्वार। जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि, ‘ मुसलमान शरिया के खिलाफ किसी भी कानून को स्वीकार नहीं करेंगे।’ मौलाना मदनी ने कहा कि हमें शरिया के खिलाफ कोई भी कानून मंजूर नहीं है। मुसलमान हर चीज पर समझौता कर सकते हैं, लेकिन शरिया से नहीं। उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म का अनुयायी अपनी धार्मिक गतिविधियों में किसी भी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी सवाल किया कि जब अनुसूचित जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत प्रस्तावित विधेयक से छूट दी गई है तो मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता क्यों नहीं दी गई है।
जमीयत उलमा-ए-हिंद प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमें शरिया के खिलाफ कोई भी कानून मंजूर नहीं है। मुसलमान हर चीज पर समझौता कर सकते हैं, लेकिन शरिया से नहीं। उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म का अनुयायी अपनी धार्मिक गतिविधियों में किसी भी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता। उन्होंने यह भी सवाल किया कि जब अनुसूचित जनजातियों को संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत प्रस्तावित विधेयक से छूट दी गई है तो मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता क्यों नहीं दी गई है। मौलाना मदनी ने कहा कि मुसलमानों को संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 (जो धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित हैं) के तहत प्रस्तावित कानून से छूट दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस नजरिए से समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों से इनकार करती है।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि समान नागरिक संहिता का कार्यान्वयन संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत किया जा रहा है, जो कहता है कि राज्य पूरे भारत में एक समान नागरिक संहिता को सुरक्षित करने का प्रयास करेगा, लेकिन यह केवल एक सुझाव था, दिशानिर्देश नहीं। मदनी ने आगे कहा कि उनकी कानूनी टीम बिल की समीक्षा करेगी और उसके अनुसार कार्रवाई करेगी। उन्होंने कहा कि मुद्दा मुस्लिम पर्सनल लॉ का नहीं बल्कि देश के धर्मनिरपेक्ष संविधान के संरक्षण का है। उन्होंने तर्क दिया कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा का अर्थ है कि देश का अपना कोई धर्म नहीं है। मौलाना मदनी ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ इंसानों द्वारा नहीं बनाए गए हैं, बल्कि कुरान और हदीस द्वारा बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि इस पर न्यायिक बहस हो सकती है, लेकिन बुनियादी सिद्धांतों पर कोई असहमति नहीं है।

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